सुधा मल्होत्रा 11 साल की थीं तो पहला गीत 1950 में आई फिल्म `आरजू ` का गा दिया
सुधा मल्होत्रा, साहिर लुधियानवी और संगीतकार रोशन की तिकड़ी ने फिल्म जगत को बहुत से सुपरहिट गीत दिए
वह 11 साल की थी जब उसने स्टूडियो में 1950 में आई फिल्म `आरजू `का गीत गाया था। `मिला दे नैन` वहां पर मौजूद संगीतकार अनिल बिस्वास ने जब इस बच्ची की आवाज सुनी तो उन्होंने वहां उसकी बहुत तारीफ की l जो बच्ची गीत गा रही थी उसका नाम था `सुधा मल्होत्रा` जिन्होंने कुछ ही समय में फिल्म इंडस्ट्री में अपना अच्छा खासा नाम बना लिया था। सुधा मल्होत्रा का जन्म 30 नवंबर 1936 को दिल्ली में हुआ बचपन से ही उनको गाने का शौक था। परिवार लाहौर में रह रहा था। वहां रेडक्रॉस के एक चैरिटी कार्यक्रम में सुधा को पहली बार गाने का मौका मिला तब उनकी उम्र मात्र छे बरस की थी। उस कार्यक्रम में संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर भी मौजूद थे।उन्होंने इस आवाज को सुनते ही लगा कि यह आवाज फिल्मों के गीतों को गाने के लिए बिल्कुल मुकम्मल है।
जल्दी ही ऑल इंडिया रेडियो लाहौर में सुधा को चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर गाने का मौका मिला। सुधा के नाना मुंबई में रहा करते थे और वह छुट्टियों में अक्सर जाया करती थी। इनका एक रिश्तेदार का अनिल विश्वास के साथ अच्छा खासा संबंध था वह सुधा को अनिल दा के पास ले गए। अनिल बिस्वास ने सुधा से एक गाना सुना और वह आवाज से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने सुधा को फिल्म में गीत गवाने का मन बना लिया। इस तरह सुधा मल्होत्रा को बतौर प्लेबैक सिंगर फिल्म `आरजू` में सबसे पहले गाने का मौका मिला। लेकिन उन पर बच्चों जैसी आवाज का ठप्पा लगा खासकर फिल्म `अब दिल्ली दूर नहीं `मैं बच्चे के गाने से एक तरह से खास टाइप के गीत गाने के लिए ही हो गई। फिल्म का एक मशहूर और गीत सुधा मल्होत्रा ने गाया था `माता ओ माता `काफी मशहूर हुआ था। उसके बाद फिल्म `घर घर में दिवाली` और `काला बाजार `जैसी फिल्मों में गाने का मौका मिला। काला बाजार में सुधा मल्होत्रा ने भजन गाया था जो आज भी उतना ही मकबूल है जितना पहले था। भजन के बोल हैं `ना मैं धन्य चाहूं ना रतन चाहूं तेरे चरणों की धूल मिल जाए `इसके बाद तो सुधा मल्होत्रा की आवाज में धार्मिक फिल्मों में बहुत से भजन आए। जैसे-जैसे सुधा बड़ी हो रही थी वैसे वैसे उनकी सुंदरता के भी चर्चे होने लगे। सुधा के इस संगीत के सफर में शामिल हो गए साहिर लुधियानवी। 1959 में आई फिल्म `भाई बहन `में सुधा ने साहिर के गीतों को पहली बार आवाज भी दी। साहिर सुधा से बहुत प्रभावित हुए।उन की दोस्ती आगे बढ़ने लगी और मजबूत होती गई और इतिहास में सुधा के गाए गीत एक से बढ़कर एक दर्ज होते गए। दोस्तों फिल्म कभी-कभी का गीत `कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है` असल में साहिर लुधियानवी ने अपने जज्बात जाहिर करने के लिए सुधा मल्होत्रा के लिए यह गीत लिखा था और यह गीत चेतन आनंद ने सुधा मल्होत्रा से ही यह गीत गवाया था। जिसमें खयाम का संगीत था। लेकिन वह फिल्म नहीं बन सकी। बाद में यश चोपड़ा ने कभी-कभी बनाई तो इस गीत को फिल्म में रखा गया लेकिन इसमें आवाज लता मंगेशकर की थी।
सुधा मल्होत्रा, साहिर लुधियानवी और संगीतकार रोशन की तिकड़ी ने फिल्म जगत को बहुत से सुपरहिट गीत दिए। बरसात की रात फिल्म हिंदी सिनेमा की लाजवाब फिल्मों में मानी जाती है और अपने संगीत से दशकों तक जानी जाएगी। यह म्यूजिकल फिल्मों में इसको आज भी शुमार किया जाता है। इसके गीत `ना तो कारवां की तलाश है `यह इश्क इश्क यह इश्क इश्क इन गीतों और कव्वालियों ने अपने समय में हंगामा मचा दिया था। फिल्म दीदी का यादगार गीत भी सुधा मल्होत्रा ने गाया और उसका संगीत भी सुधा मल्होत्रा ने ही दिया था। हुआ यूं कि दीदी के संगीतकार थे एन दत्ता उनकी तबीयत बिगड़ जाने की वजह से साहिर के सुझाव पर सुधा मल्होत्रा ने इस गाने की धुन भी बनाई और गाया भी। यह गीत था `तुम मुझे भूल भी जाओ तो यह हक है तुमको मेरी बात और है कि मैंने तो मोहब्बत की है` दोस्तों यह गीत भी साहिर लुधियानवी ने ही लिखा था। इंडस्ट्री में साहिर और सुधा मल्होत्रा के प्यार की बातें होने लगी तो इसका असर सुधा मल्होत्रा पर भी बहुत पड़ा। तब सुधा की उम्र थी मात्र 22 वर्ष थी. उस समय सुधा के पास दो ऑप्शन थे या तो अपने घरवालों की मान उनको खुश रखे या फिर घरवालों को नाराज कर अपना कैरियर जारी रखें। सुधा ने अपने घरवालों की मानी और शादी कर ली और फिल्मों से अपना नाता तोड़ दिया। इस तरह एक आवाज जिसने बहुत आगे जाना था वही विराम लग गया।सुधा मल्होत्रा ने फिल्म `आरजू` `अब दिल्ली दूर नहीं ` `गर्लफ्रेंड ` `देख कबीरा रोया ` `धूल का फूल` ` बरसात की रात` ` गोहार` `दिल-ए-नादान` `बाबर` `दीदी` `काला पानी` और `प्रेम रोग` जैसी फिल्मों में गीत गाए। सुधा मल्होत्रा ने लगभग 155 फिल्मों में गीत गाए हैं और उनके गीतों की संख्या तीन सौ के आसपास है। कई सालों बाद किसी कार्यक्रम में राज कपूर ने सुधा को ग़ज़ल गाते हुए देखा। फिर राज कपूर ने फैसला कर लिया कि उनकी फिल्म `प्रेम रोग` के लिए सुधा मल्होत्रा गीत गाएंगी। लंबे अरसे के बाद सुधा फिर स्टूडियो पहुंची लेकिन इस बार वह काफी नर्वस थी। फिल्म प्रेम रोग का गीत `प्यार था कि कुछ और था ना तुझे पता ना मुझे पता हे` सुधा का यह आखिरी गीत था। क्योंकि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है। भजन गायकी में सुधा मल्होत्रा ने कई भजन ऐसे गाए जो सुपर हिट रहे। भले ही उन्होंने फिल्मों में गाना छोड़ दिया लेकिन अभी वह रियाज करती है।