शाश्वति मंडल और शशांक मक्तेदार के गायन ने श्रोताओं का मोह लिया हृदय तीन दिवसीय 43वें वार्षिक चंडीगढ़ संगीत सम्मेलन का दूसरा दिन

 तीन दिवसीय 43वें वार्षिक चंडीगढ़ संगीत सम्मेलन का दूसरा दिन


शाश्वति मंडल और शशांक मक्तेदार के गायन ने श्रोताओं का मोह लिया हृदय

सम्मेलन के अंतिम दिन 14 नवम्बर को प्रात: 11 बजे अश्विनी भीडे देशपांडे गायन प्रस्तुत करेंगी

चंडीगढ़: इंडियन नेशनल थियेटर द्वारा दुर्गा दास फाउंडेशन तथा संगीत नाटक एकेडमी के सहयोग से तीन दिवसीय 43 वां वार्षिक चंडीगढ़ संगीत सम्मेलन के दूसरे दिन एक ओर जहां शाश्वति मंडल ने अपने गायन से श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुति दी। वहीं दुसरी ओर शशांक मक्तेदार के गायन ने श्रोताओं का समां बांधे रखा तथा श्रोताओं से खूब प्रशंसा बटौरी।  

स्कूल, सैक्टर 26 में आयोजित इस संगीत सम्मेलन में सर्वप्रथम शाश्वति मंडल ने अपने गायन की शुरूआत की। उन्होंने अपनी प्रथम प्रस्तुति पं. सीआर व्यास रचित राग धनकानि कल्याण में दो बंदिशे से की। विलंबित ख्याल की एक बंदिश के पश्चात द्रुत तीन ताल की बंदिश के बोल थे देख चंदा नम निकस आयो।


शाश्वति मंडल के साथ इस दौरान हारमोनियम पर परोमिता मुखर्जी तथा तबले पर विनोद लेले ने बखूबी संगत की।  

शाश्वति मंडल ग्वालियर दरबार गायक पं. बालामाऊ उमेडक़र की नातिन और ग्वालियर घराने की वरिष्ठ गायक पं. बालासाहेब पूंछवाले की शिष्या हैं। वे वर्तमान में पं. मधुप मुद्गल से भी गायन सीख रही हैं। उनके संगीतमें पं. कुमार गंधर्व और जयपुर धराने की गायकी का भी प्रभाव दिखाता है। शाश्वती ने इन उदार संगीत झुकावों को अपनी गायकी (संगीत शैली) में एकीकृत किया है। उन्हें उनकी पूर्ण-गुंजयमान आवाज, और तान और मुर्की की स्पष्टता के लिए प्रशंसा मिली है। उन्हें व्यापक रूप से टप्पा गायन के अग्रणी प्रतिपादकों में से एक माना जाता है।

वहीं दूसरी ओर शशांक मक्तेदार ने अपने गायन की प्रस्तुति में आगरा घराने का प्रसिद्ध राग कौसी कानणा से किया। से शुरूआत की जिसमें निबद्ध बंदिश कांसे कहुं आली री जो कि तीन ताल में निबद्ध थी, को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत की। इसके पश्चात उन्होंने राग बहार में दो रचनाए प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।  

शशांक मक्तेदार के साथ इस दौरान हारमोनियम पर विनोद मिश्रा तथा तबले पर विनोद लेले ने बखूबी संगत की।  

शशांक मक्तेदार अपनी पीढ़ी के प्रमुख गायकों में से एक हैं। वह ग्वालियर, जयपुर और आगरा घराने की बहुत समृद्ध परंपराओं से संबंधित हैं।  उन्हें 1991 से 2000 तक आईटीसी संगीत अनुसंधान अकादमी कोलकाता में पारंपरिक गुरु-शिष्य परंपरा में नौ साल तक पंडित उल्हास काशालकर से तालीम प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।  शशांक के गायन में सौंदर्यवादी दृष्टिकोण के साथ विभिन्न प्रकार के संगीत अलंकरण हैं। इनके गायन में इनकी जटिल ‘तान’ पैटर्न की तैयारी और ताल पर पूर्ण व मजबूत पकड़ झलकती है। उन्होंने अपनी कला को कई संगीत मंचों पर प्रस्तुत किया है। शशांक ने कई अन्य देशों जैसे यूएसए, यूके, फ्रांस, स्विटजरलैंड और दुबई का भी दौरा किया और प्रदर्शन किया।

इस संगीत सम्मेलन में कोविड प्रोटोकॉल का पूरा ध्यान रखा गया। सम्मेलन में श्रोताओं व दर्शकों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य रखा गया था।

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