अनुपमा मनहर छत्तीसगढ़ सिनेमा में 8 फिल्मों में बतौर asst.director काम कर चुकी है
(Harish Kaushal)
एच्आईवी काउंसलर की सरकारी नौकरी छोड़ अनुपमा मनहर ने पुणे से हॉस्पिटलिटी में एमबीए की पढाई के दौरान ही कैमरा देखा और सिनेमा के प्रति रुझान बढ़ा। 23 वर्ष की उम्र में असिस्टेंट डायरेक्टर बन गई।
छत्तीसगढ़ फिल्म इंडस्ट्री में आना यह एक इत्तेफाक है पुणे से एमबीए कर रही थी। वैसे अनुपमा जिला अस्पताल में बतौर काउंसलर काम करती थी। वहां से रिजाइन कर के हायर एजुकेशन के लिए पूणा गई थी। इस बीच मेरी सहपाठी थी कोई हैदराबाद से थी कोई पुणे से थी कोई मुंबई से। इस बीच मुंबई मेरा आना जाना लगा रहता था। वहां मैंने फर्स्ट टाइम एक ऐड किया था। जब मैं छत्तीसगढ़ वापस आई तो मुझे पता लगा कि मेरी बहन छत्तीसगढ़ फिल्मों में काम कर रही है। फिल्म का नाम था `बीए सेकंड ईयर` उस समय रिलीज होने वाली थी। इंडस्ट्री के साथ लिंक बनता गया। मेरी थोड़ी बहुत पहचान भी होने लगी। मेरी बहन की वजह से जब उसे दूसरी फिल्म के लिए ऑफर आया तो मैं उसके साथ गई थी कुछ साइनिंग अमाउंट वगैरा के लिए गए थे। वहां मेरी सिस्टर ने बताया कि एमआई प्रोडक्शन के निर्माता हैं मोहित साहू जी। उन्होंने मुझे ऑफर किया कि कभी फिल्म में हमारे साथ भी काम कीजिए। मैं उस समय लाइटली मुस्कुराकर चली गई। क्योंकि मैंने सोचा ही नहीं था कि मैं फिल्मों में काम करूंगी। जिस दिन फिल्म `लव दीवाना` का मुहूर्त था तो मुझे कॉल आया डायरेक्टर का और यहां के जो पीआरओ हैं छत्तीसगढ़ फिल्मों के काफी मशहूर हैं दिलीप जी। उनका भी मुझे ऑफर आया। यह रविवार की बात है। एक दिन में मुझे दो फिल्मों के लिए ऑफर आया यह मान लीजिए कि 1 घंटे का ही अंतर होगा जिसमें मुझे दो फिल्मों के लिए ऑफर आया। तो दिलीप सर ने मुझे कहा कि बेटा तुम इस फिल्म में काम करो तो मैंने फिर `लव दीवाना`के लिए काम शुरू कर दिया। लेकिन प्रदर्शित मेरी दूसरी फिल्म थी `आई लव यू टू` वह मेरी प्रदर्शित पहली फिल्म थी। अनुपमा बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुकी हैं `लव दीवाना` `आई लव यू टू` `कुरुक्षेत्र` `सिंदूर` जिनमें कुछ फिल्में है। बाजीगर 4 दिन पहले ही एक फिल्म और मेरी फाइनल हुई है जो की अप्रैल में शुरू हो जाएगी। अभी हाल ही में रिलीज हुई फिल्म `मैं दीया तैं मोर बाती` को भी मार्केट में जबरदस्त रिस्पांस मिला है इस फिल्म में भी अनुपमा मनहर बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर रही हैं। अपने परिवार के बारे में बताती हैं कि मेरी बहन जो की फिल्मों में काम कर रही हैं। यूं तो मुझसे छोटी हैं लेकिन इंडस्ट्री में मेरे लिए वह सीनियर है जयंती मनहर। दो बड़े भाई हैं एक छोटी सिस्टर है। माता पिता हैं। भैया रेलवे में है। फिल्म इंडस्ट्री से कोई दूर दूर तक का कोई नाता नहीं रहा। बहन का भी फिल्म इंडस्ट्री में आना एक इत्तेफाक ही रहा बीए सेकंड ईयर के जो प्रोड्यूसर डायरेक्टर थे प्रणव जी ने फेसबुक के थ्रू मेरी बहन जयंती से संपर्क किया था। फोटो उनको पसंद आई थी। उसके बाद उन्होंने जयंती को फिल्म के लिए ऑफर किया था।
अनुपमा बताती हैं कि उन्हें पर्दे पर काम करने की बजाय परदे के पीछे काम करने का बहुत शौक है। वह बताती है की कुछ वर्ष पहले एक शॉट मूवी की थी बतौर एक्ट्रेस। जब उसका शूट चल रहा था तो मैं एक्टिंग से ज्यादा डायरेक्शन पर ध्यान देती थी। जब डायरेक्टर साहब मुझे डायरेक्शन देते थे तो मेरा फोकस डायरेक्शन पर हो जाता था ना कि एक्टिंग पर। उस समय मेरे को बहुत कुछ सीखने को मिला। शुरू से ही मुझे पर्दे के पीछे काम करना ही था। मुझे डायरेक्शन में ही शौक था।अनुपमा बताती है कि छत्तीसगढ़ में अब फिल्मों का स्तर बहुत अच्छा होना शुरू हो गया है। अलग से फिल्में बननी शुरू हो गई हैं। अब लोग छत्तीसगढ़ी फिल्मों का इंतजार कर रहे है। सबसे बड़ी बात यह है कि कलाकारों को प्लेटफार्म मिल रहा है। नए नए कलाकारों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यहां छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए सरकार भी कोशिशें कर रही है। मैं चाहती हूं कि मैं छत्तीसगढ़ी फिल्मों में ही ज्यादा काम करूं। अभी मैं डायरेक्शन भी करने जा रही हूं। इसके साथ-साथ चाहे वह पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री हो चाहे भोजपुरी इंडस्ट्री हो या बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री काम करने का तरीका वही होता है यह एक कला है। कहते हैं ना कि कलाकार की ना कोई जाति होती है ना ही किसी क्षेत्रीय तरीके से होता है और ना ही इसकी किसी भाषा के तौर पर होता है। इसका कोई बंधन नहीं होता। जितनी मेहनत में छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में कर रही हूं मुझे उतनी ही मेहनत दूसरी फिल्मों के लिए भी करनी पड़ेगी। छत्तीसगढ़ में यहां एक अपनापन है। एक परिवार की तरह काम करते हैं। बाहर जाएंगे तो हम अनजान रहेंगे और ज्यादा स्ट्रगल करनी पड़ती है।
अनुपमा बताती हैं कि उन्हें पर्दे पर काम करने की बजाय परदे के पीछे काम करने का बहुत शौक है। वह बताती है की कुछ वर्ष पहले एक शॉट मूवी की थी बतौर एक्ट्रेस। जब उसका शूट चल रहा था तो मैं एक्टिंग से ज्यादा डायरेक्शन पर ध्यान देती थी। जब डायरेक्टर साहब मुझे डायरेक्शन देते थे तो मेरा फोकस डायरेक्शन पर हो जाता था ना कि एक्टिंग पर। उस समय मेरे को बहुत कुछ सीखने को मिला। शुरू से ही मुझे पर्दे के पीछे काम करना ही था। मुझे डायरेक्शन में ही शौक था।अनुपमा बताती है कि छत्तीसगढ़ में अब फिल्मों का स्तर बहुत अच्छा होना शुरू हो गया है। अलग से फिल्में बननी शुरू हो गई हैं। अब लोग छत्तीसगढ़ी फिल्मों का इंतजार कर रहे है। सबसे बड़ी बात यह है कि कलाकारों को प्लेटफार्म मिल रहा है। नए नए कलाकारों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। यहां छत्तीसगढ़ी सिनेमा के लिए सरकार भी कोशिशें कर रही है। मैं चाहती हूं कि मैं छत्तीसगढ़ी फिल्मों में ही ज्यादा काम करूं। अभी मैं डायरेक्शन भी करने जा रही हूं। इसके साथ-साथ चाहे वह पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री हो चाहे भोजपुरी इंडस्ट्री हो या बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री काम करने का तरीका वही होता है यह एक कला है। कहते हैं ना कि कलाकार की ना कोई जाति होती है ना ही किसी क्षेत्रीय तरीके से होता है और ना ही इसकी किसी भाषा के तौर पर होता है। इसका कोई बंधन नहीं होता। जितनी मेहनत में छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री में कर रही हूं मुझे उतनी ही मेहनत दूसरी फिल्मों के लिए भी करनी पड़ेगी। छत्तीसगढ़ में यहां एक अपनापन है। एक परिवार की तरह काम करते हैं। बाहर जाएंगे तो हम अनजान रहेंगे और ज्यादा स्ट्रगल करनी पड़ती है।
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