राजाधिराज कला केंद्र, मथुरा 35 वर्षों से रामलीला कर रहे है डेराबस्सी में पहली बार
मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ देश के विभिन्न शहरों में श्री रामलीला का मंचन कर चुकें है
राम जी के कार्य में कभी घाटा नहीं होता -पंडित विनोद बिहारी चतुर्वेदी
डेराबस्सी गुलाबगढ़ रोड स्थित अशोक वाटिका में श्री रामलीला का मंचन हो रहा है यहाँ हो रही रामलीला अन्य जगह पर हो रही रामलीला से अलग है। शयद इसी लिए चर्चा का विषय बनी हुई है। इस की विशेषता यह है की इस बार रामलीला मंचन के लिए विशेष तोर पर मथुरा से कलाकार आये हुए है। राजाधिराज कला केंद्र, मथुरा। यह कला केंद्र पंडित विनोद बिहारी चतुर्वेदी और उन के सपुत्र विवेक बिहारी चतुर्वेदी द्वारा चलाया जा रहा है। इन से विशेष बातचीत हुई। राजाधिराज कला केंद्र पिछले 35 वर्षों से काम कर रहा हैं। शुरुआत पंडित विनोद बिहारी चतुर्वेदी जी ने की थी। मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़ देश के विभिन्न शहरों मैं श्री रामलीला का मंचन करते आए हैं.इसके अलावा सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम भी इन्होंने किए हैं चंडीगढ़ में सेक्टर 27 में लगातार 4 वर्षों तक रामलीला की है। उसके बाद करोना कॉल शुरू हो गया था जिसमें की रामलीला का आयोजन नहीं किया गया। अब पहली बार मथुरा से हम यहां डेराबस्सी में रामलीला का मंचन करने के लिए पधारे हैं। हमारे ग्रुप में कुल 22 लोग हैं जिसमें 20 कलाकार हैं और 2 लोग अन्य सहायता करने के लिए रहते हैं। रामलीला के इलावा रास लीला, कृष्ण लीला सांस्कृतिक कार्यक्रम भी करते हैं। मयूर नृत्य, दीपक नृत्य यह सब करते हैं। विनोद बिहारी चतुर्वेदी जी खुद यहां डेरा बस्सी पधारे हुए हैं। उन्होंने अधिक जानकारी देते हुए बताया की मथुरा में वह गंगा किनारे रहते हैं और जितने भी कलाकार उनके साथ आए हैं यह सभी उनके रिश्तेदार हैं और एक बहुत ही बढ़िया टीम वर्क के साथ काम करते हैं। उन्होंने आगे बताया कि आजकल के समय में और पहले समय में बहुत अंतर हो गया है पहले के समय में लोग हमारे कार्यक्रमों में 10 -10 हजार लोगों की भीड़ होती थी। क्योंकि तकनीक का युग आ गया है तो दर्शकों का फर्क तो पड़ा ही है। लेकिन हम लोगों ने तकनीक के साथ भी काम किया है। अब बात करें तो हमारे काम भी जो अब ऑनलाइन ही बुकिंग होती है। पहले ऐसा नहीं होता था। सोशल मीडिया ने सब कुछ बदल दिया है।
कार्यक्रम में शुद्ध हिंदी और रामायण में श्लोक डायलॉग बोलना यह सब संतों के आशीर्वाद से ही होता है। उन्होंने कहा कि काफी समय पहले हम संतो से जुड़े हुए थे और बड़े-बड़े संतो के कार्यक्रम किए करते थे.हम लोगों ने गुजरात में दिल्ली में अंबाला में पंजाब के कई शहरों में कार्यक्रम किए हैं। डेराबस्सी के लोगों से हमारी मुलाकात सेक्टर 27 की रामलीला के दौरान हुई थी। यहाँ के लोगों से काफी लगाव हो गया था। अब हमको यहां पर मौका मिला है। हम रामजी का काम करते हैं। राम जी का प्रचार करते हैं और राम जी की ही रोटी खाते हैं। यही हमारा एक आमदन का जरिया है। पिछले करोना कॉल से हमारे इस कार्य की तो कमर ही टूट गई है। पहले किसी जमाने में गांव में कार्यक्रम होता था तो दूर-दूर से लोग आते थे और 10 -10 लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाती थी। वहां पर आमदनी भी होती थी। अब जैसे तैसे हम अपना निर्वाह कर रहे हैं। इस काम को कर रहे हैं हम डटे रहे हटे नहीं। हमको विश्वास है कि राम जी के काम में कभी भी घाटा नहीं होता। राम जी हम को रोटी देते हैं और हम ब्राह्मण हैं क्योंकि आरक्षण हमको कम है हम और कोई कार्य कर भी नहीं सकते हम सफाई करते हैं आत्मा की। मनुष्य के भीतर जो आत्मा होती है लोग इसे तमाशा कहते हैं। लेकिन यह तमाशा नहीं है.यह है तम नाशा जो हृदय में अंधकार रूपी राक्षस विराजमान हो जाता है तो हम राम जी का नाम लेकर उसे दूर करते हैं। हम राम जी के बारे आज की पीढ़ी को बताते है रामजी ने अपने भाई बहनों से कैसा व्यवहार किया अपने माता पिता के साथ कैसा व्यवहार किया कैसे अपने माता पिता की आज्ञा मानकर वन को चले गए। उस प्रभाव को यदि हम अपनी समाज में डालेंगे उसका 25 परसेंट भी असर अगर हुआ तो आदमी सनातन धर्म से जुड़ा रहेगा। समाज यदि भगवान से जुड़ा रहेगा तो उसके जीवन में अच्छा ही अच्छा होगा ऐसा हमको विश्वास है।
मथुरा के यह सब ब्राह्मण है और यमुना जी के किनारे रहते हैं उनका पुत्र विवेक चतुर्वेदी भी ग्रुप में काम करते हैं वैसे यह अउंट्स की शिक्षा ली हुई है कुछ वर्ष दुबई में भी नौकरी करके आए हैं। लेकिन वहां मन नहीं लगा और यहां आकर रामलीला से जुड़ गया। क्योंकि मेरी भी अवस्था 50 के ऊपर हो गई है तो हम लोग चाहते हैं कि इस कार्य को आगे बढ़ाएं। अब सारा कार्यभार बेटा ही संभालता है। इस ग्रुप में सारे हमारे परिवार के सदस्य हैं भाई हैं भतीजे हैं सभी चतुर्वेदी परिवार से हैं। हम सभी आपस में मिल जुल कर रहते हैं। प्याज और लहसुन का सेवन तक नहीं करते। शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं। हमारे बड़े बूढ़े हमें रामायण का ज्ञान देते थे और कहते थे कि रामायण को पढ़ो। पढ़ते-पढ़ते हमें ज्ञान हो गया हम मथुरा पुरी में रहते हैं हमें कृष्ण लीला का ज्ञान हो गया जब हम अयोध्या पहुंच गए तो अयोध्या में संतों के साथ में अपने गुरु जी के साथ में रह करके हमने उनसे भी ज्ञान प्राप्त किया और हम उसी हिसाब से रामायण के हिसाब से चलते हैं। हमारे कार्यक्रमों में अश्लीलता का कोई स्थान नहीं होता। इतने बच्चे भी काम कर रहे हैं। सभी पढ़े लिखे लोग हैं। आने वाले दिनों में हम डेरा बस्सी में अपने कलाकारों द्वारा की गई श्री राम लीला मंचन कि एक छाप छोड़ कर जाएंगे और लोग हमारे कलाकारों की परफॉर्मेंस को याद करेंगे।
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