Kishor Bhanushali परफेक्ट देव साहब की कॉपी II Jewel Thief देखी और लगा कि देवानंद साहब से मेरी शक्ल वाकई में ही मिलती है।

 यह मेरी खुशनसीबी है कि इतने बड़े लीजेंड देव आनंद साहब के साथ मेरा नाम जोड़ा जाता है -किशोर भानुशाली



Harish kaushal

भारत के ग्रेगरी पेक कहे जाने वाले देवानंद साहब(Dev anand) के स्टाइल को तो बहुत से कलाकारों ने कॉपी करने की कोशिश की है लेकिन सबसे ज्यादा कामयाब और हूबहू कॉपी करने में जो कलाकार कामयाब हुए हैं वह केवल किशोर भानूशाली (Kishor Bhanushali) ही है। फिल्म कैरियर की बात करें तो उन्होंने फिल्म लश्कर से अपने कैरियर की शुरुआत की थी। उनसे ख़ास बात करने का मौका मिला। 


                किशोर भानूशाली बताते हैं कि मूल रूप से वह गुजरात से संबंधित है लेकिन उनका जन्म 13 मार्च 1962 मुंबई में हुआ। मुंबई में ही पले बड़े हुए, शिक्षा भी मुंबई में ही हुई। बचपन से ही फिल्में देखने का बहुत शौक था। बच्चे थे, पैसे इतने  मिलते नहीं थे। महीने के बहुत कम पैसे मिलते थे। उस समय मुंबई में सिनेमा का टिकट ₹2 से शुरू होता था। जो उस समय बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी। यह बात लगभग 70 के दशक की है। उस समय उम्र 7-8 वर्ष की थी। ज्यादातर उस समय मैंने फिल्में देखी थी `कारवां` (Caravan), `हमजोली`(Hamjoli) जितेंद्र (Jitender)का बहुत बड़ा फैन था। उस समय राजेश खन्ना सुपरस्टार (Super Star Rajesh Khanna)हुआ करते थे। उनकी फिल्में  `हाथी मेरे साथी`(Hathi Mere Sathi) `कटी पतंग`(Kati Patang) `आराधना` (Aradhana) सुपरहिट रही थी। उस समय मैं सिर्फ दो कलाकारों को ही जानता था राजेश खन्ना और जितेंद्र को।

               उस समय जमाना यह था कि फिल्म देखना भी यह बड़ा गुनाह माना जाता थ। अच्छा नहीं समझा जाता था। चोरी छुपे ही फिल्म देखने जाना पड़ता था। यह मैं नहीं और भी लोग ज्यादातर ऐसे ही फिल्में देखते थे। मैं फिल्म के लिए पैसे जमा करता था। दो  पैसे तीन पैसे, पांच पैसे, जो भी घर से मिलते थे तो उनको मैं जमा कर लेता था। जब दो रूपया 20 पैसे इकट्ठे हो जाते थे तो हमारे घर के पास ही एक टॉकीज थी तो मैं वहां जाता था फिल्म देखने। उस जमाने में सिनेमा की टिकटों के लिए बहुत मारामारी होती थी। आज के समय में तो ऐसा नहीं है। अब घर बैठ कर ही सिनेमा की टिकट जो भी शो देखना है उसकी पहले एडवांस बुकिंग करवा सकते हैं। एडवांस बुकिंग पहले भी होती थी लेकिन वह बड़े महंगे रेट वाली टिकटों की एडवांस बुकिंग होती थी। सिनेमा हॉल के बाहर लंबी -लंबी कतारें लगती थी। टिकट ब्लैक में मिलती थी। उस जमाने में सब लोग फिल्मों के ही दीवाने थे। बड़ी मुश्किल से लाइन में मेरा नंबर आता था तो मैं पूरी चिल्लर टिकट खिड़की पर रख देता था। हैरानी की बात यह होती थी कि कभी भी उस आदमी ने मेरा चिल्लर गिना  ही नहीं। मैं जब चिल्लर रखता था तो वह अपने सर पर हाथ मार के कहता था क्या रे या फिर आ गया। टिकट की खिड़की पर मेरा कभी भी चिल्लर गिना नहीं और टिकट दे दिया जाता था। भीड़ भी बहुत होती थी। दो पैसा पांच पैसा गिनने का समय भी किसी के पास नहीं होता था। उस जमाने में सड़क के किनारे भी गली मोहल्लों में भी फिल्में दिखाई जाती थी। तो हम लोग वहां बैठकर भी फिल्में देखते थे। जहां भी पता चलता था कि फिल्म दिखाई जा रही है तो चले जाते थे। बहुत ही शौक रहा फिल्में देखने का। 

                उन्हीं दिनों मेरी एक क्लास का लड़का था तो उसने मुझे बताया कि तुम्हारी शक्ल देवानंद से बहुत मिलती है। उस समय उम्र रही होगी 8 या 9 बरस की। मैंने कहा कि यह देवानंद कौन है। उसने कहा कि मैंने फिल्म देखी है `जॉनी मेरा नाम`(Johny Mera Naam) उस फिल्म का हीरो है वह। उसने तो मुझे एक तरह से कह दीजिए कि गोली खिला दी कि मैं देवानंद जैसा दिखता हूं। मन में बहुत एक्साइटमेंट रही कि यह देवानंद कौन है और यह पिक्चर `जॉनी मेरा नाम` मैंने जरूर देखनी है। उन्हीं दिनों फिल्म रिलीज हुई थी `यह गुलिस्तां हमारा` (Yeh Gulistan Hamara) . मेरे और मित्रों ने तीन चार मित्र थे हम सभी ने प्लान किया कि हम यह फिल्म देखने जाएंगे। शनिवार का दिन था बड़े भाई को पता चल गया मैं फिल्म देखने जा रहा हूं और स्कूल नहीं जा रहा। बहुत डांट पड़ी। मैंने अपने मित्रों से कहा कि आप टिकट बेच देना मैं स्कूल ही जाऊंगा और फिल्म मैं देख नहीं पाया। उसके बाद स्कूल में छुट्टियां हो गई और मैं चला गया पालघर। वहां मेरे मामा रहते थे। वहां यही फिल्म लगी हुई थी `यह गुलिस्तां हमारा` मैंने अपने मामा के बेटे को बोला कि यार मेरे को यह पिक्चर दिखा दे जरूर। 

उस समय जो हमें फिल्म दिखाता था उसको हम भगवान से कम नहीं मानते थे यह आदमी मेरे लिए भगवान है। उसने वहां पर मेरे को यह फिल्म दिखाइ। पहली फिल्म देवानंद साहब की मैंने देखी और उसके बाद मैं मुंबई आया। वापस आया तो मैंने फिल्म `ज्वेल थीफ`(Jewel Thief) देखी और लगा कि देवानंद साहब से मेरी शक्ल वाकई में ही मिलती है। बस यहां से शुरुआत हुई मेरी। मैं आईने के सामने खड़ा हो गया, शर्ट का कॉलर ऊपर कर बटन बंद किया रुमाल बांधा, गर्दन हिलाई। आज मुझ को लगता है कि 50 -55 साल हो गए आज तक मेरी गर्दन हिल रही है। यह मेरी खुशनसीबी है कि इतने बड़े लीजेंड के साथ मेरा नाम जोड़ा गया। लोग कहते हैं कि तुम परफेक्ट देव साहब की कॉपी हो। कॉपी करना और मिमिक्री करना दो अलग-अलग बातें हैं। मिमिक्री जो होती है जो स्टेज पर लोग करते हैं वह बहुत गंदी करते हैं। कॉपी करना अलग बात होती है और मुश्किल काम होता है। अगर आप कॉपी करने में 19-20 कर दिया तो लोग आपका मजाक उड़ाएंगे। हंसी का मजाक बना देंगे। आपको हंड्रेड परसेंट देना पड़ता है। यह बहुत ही मुश्किल कार्य है। जब आप अपनी खुद की एक्टिंग करते हो तो बहुत आसान होता है लेकिन जब आप किसी दूसरे की एक्टिंग करते हो तो वह मुश्किल हो जाता है। क्योंकि आपकी अपनी बॉडी लैंग्वेज है। आपकी अपनी जुबान है। आप अपनी बॉडी जैसे मर्जी इस्तेमाल कर सकते हो। लेकिन जब आप किसी की कॉपी करते हो तो पूरी तरह से उसकी कॉपी करनी पड़ती है।

                 किशोर भानूशाली बताते हैं कि उन्होंने बहुत स्ट्रगल किया। लगभग 20 वर्ष स्ट्रगल किया। किसी ने घास भी नहीं डाली। स्टूडियो में कोई घुसने नहीं देता था। ऑफिस में कोई आने नहीं देता था पैसे थे नहीं जेब में। मैं साइकिल पर जाता था। मैं देवानंद साहब की एक्टिंग करके दिखाता था ताकि मुझे ऐसा लगता था कि अगर मैं यह करूंगा तो मुझे तुरंत काम मिल जाएगा। लेकिन हुआ उल्टा। इसी वजह मेरे को काम किसी ने नहीं दिया और कहते थे कि आप कॉपी कर रहे हो। फिर मैंने कॉलेज की पढ़ाई भी जारी रखी। कुछ समय के बाद शादी हो गई। पढ़ाई भी छूट गई। फिर पिताजी ने दुकान पर बैठा दिया।  बहुत हो गया अब दुकान पर बैठा हूं।रात को शो किया करता था। मुझे ₹30 मिला करते थे। शो भी छूट गए। फिर तो दुकान से घर और घर से दुकान ही रह गया। मैं एक्टिंग भूल गया। दो-तीन साल तो मैं सब कुछ भूल गया। 

               एक दिन मोहन चोटी साहब ( Mohan Choti ) घर पर आए। अपने ज़माने के बहुत बड़े कॉमेडियन थे। उन्होंने कहा कि मेरा एक शौ है तुम करोगे? मैंने कहा कि अब मैं एक्टिंग भूल ही लगभग गया हूं और काम भी नहीं मैं कर रहा। मैं सिर्फ अब दुकान और घर ही संभालता हूं। उन्होंने गुजारिश की कि एक छोटा सा मेराशो है वह तुम कर दो। एक दिसंबर को बोरीवली में यह शो है तो मैं मान गया और मैं चला गया। उनको मेरा काम इतना अच्छा लगा कि उन्होंने अपनी एक वीडियो फिल्म में मुझे काम दे दिया जिसका नाम था पागलखाना। वहां रजा मुराद साहब  (Raza Murad )से मुलाकात हुई। उन्होंने मेरा इसमें रोल बढ़वाया। उन्होंने मेरे को कई लोगों से मिलवाया।

फिर मेरी शत्रुघ्न सिन्हा साहब (Shatrughan Sinha) से मुलाकात हुई।  शत्रुघ्न सिन्हा साहब ने भी मुझ को कई लोगों से मिलवाया। लेकिन काम किसी ने नहीं दिया। फिर मेरी मुलाकात सुमित सहगल से हुई। सुमित सहगल (Sumit Sehgal) ने मेरी बहुत मदद की। बहुत से लोगों से मिलवाया। सब लोग मिल जाते थे लेकिन काम नहीं मिलता था। ऐसे करते- करते एक दिन एक मित्र ने कहा कि `दिल` (Dil ) फिल्म की शूटिंग चल रही है। तुम उनको फोन करो बांद्रा में उसकी शूटिंग चल रही थी और तुम वहां चले जाओ। मैं वहां चला गया और मुझे क्राउड में खड़ा कर दिया गया। क्राउड में खड़े होकर मैंने कुछ ऐसी हरकतें की।इन्दर कुमार साहब को वह हरकतें पसंद आ गई। उन्होंने मुझे अनुपम खेर जी (Anupam Kher) के साथ में एक छोटा सा शॉट दे दिया। उस शार्ट में मेरे को कहा गया कि एक पार्टी चल रही है आप अपने हिसाब से जो करना चाहते हो कीजिए। मैंने उसमें कुछ ऐसा किया कि वन टेक ओके हो गया। उसके बाद आमिर खान साहब आए तो आमिर खान ने कहा कि तुम मुझे पूरी फिल्म में चाहिए।

`दिल` फिल्म लगभग बन चुकी थी। मेरी बाद में एंट्री हुई।  माधुरी दीक्षित Madhuri Dixit) के साथ एक सीन दे दिया गया। उस फिल्म में मेरा रोल बढ़ता गया। फिल्म सुपर डुपर हिट रही। उस वर्ष मुझे बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड मिला बी आर चोपड़ा ( B r Chopra)साहब के हाथों से। उसके बाद `रामगढ़ के शोले` (RamGarh Ke Sholay`करण अर्जुन`(Karan Arjun) उसके बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फिल्म `दिल` की शूटिंग जहां पारसी बंगलों में हुई थी उसका नाम अभी मन्नत है। वह अब शाहरुख खान साहब का बंगलो है। फिल्म `रामगढ़ के शोले` में मुझे बेस्ट एक्टर का अवार्ड मिला। जोकि ज्ञानी जैल सिंह साहब के हाथों से मिला था दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में। 

         डेढ़ सौ दो सौ के करीब फिल्में कर डाली। पूरी दुनिया घुमा हूं। आठ पासपोर्ट मेरे भर गए हैं। आज तक में उतना ही बिजी हूं जितना 30 साल पहले बिजी था। परिवार की बात करें तो अभी उनकी धर्मपत्नी है बेटा है उसकी वाइफ है छोटा बेटा राइटर और डायरेक्टर है। इस समय वह गुजरात में है और गुजराती फिल्म कर रहा है। इसके बाद वह वेब सीरीज करेगा। जिसका राइटर और डायरेक्टर भी वही है। किशोर भानूशाली बताते हैं कि मेरी गायकी बहुत अच्छी हो गई है लोग मुझे अब सिंगिंग के लिए ही बुलाते हैं। पुराने गाने मैं गाता हूं। किशोर दा, मुकेश जी और रफी साहब के गीत गाता हूं। मैं सिंगिंग पर ही कंसंट्रेट किया हुआ है। सिंगिंग के ही मेरे शो चलते रहते हैं।


धारावाहिक `भाभी जी घर पर हैं `(Bhabhi Ji Ghar Par Hai ) एक अहम भूमिका में काम कर रहे हैं। पिछले 6 वर्ष से वह इस धारावाहिक में काम कर रहे हैं। अभी भी उसकी शूटिंग चल रही है। मैं उसकी शूटिंग पर जाता रहता हूं। लगभग रोजाना उस धारावाहिक की शूटिंग पर मैं जाता हूं। मैं खुशनसीब रहा कि मैं दिग्गज कलाकारों के का साथ मुझे काम करने का मौका मिला। कभी सोचा भी नहीं था कि हम लोग इनके साथ काम कर पाएंगे कि नहीं। मनोज कुमार, आशा पारेख इन सब के साथ मैंने काम किया है। मैं वन मैन शो करता हूं। ढाई से 3 घंटे का शो होता है। जिसमें सिंगिंग ज्यादा होती है। लोग उठते ही नहीं है। मेरी साथ में कॉमेडी भी चलती है और एंकरिंग भी चलती है।

 
  इन फिल्मों में काम किया है 
              किशोर भानूशाली ने जिन फिल्मों में काम किया है उनकी लिस्ट बहुत लंबी है। जिनमें कसम धंधे की ,दिल, बागी ए रिबेल फॉर लव, कर्ज चुकाना है, रामगढ़ के शोले, स्वर्ग यहां नर्क यहां, दिल का क्या कसूर,  युद्धपत्थ,  पायल किशोर, निश्चय, जागृति, प्यार प्यार, फूलन हसीना रामकली, औलाद के दुश्मन, गोपी किशन, पथरीला रास्ता, हंसते खेलते, जय मां करवा चौथ, संगदिल सनम, बाली उमर को सलाम, करन अर्जुन, बेवफा सनम, फौजी, जवाब, सबसे बड़ा खिलाड़ी, डांस पार्टी, बरसात, खिलाड़ियों का खिलाड़ी, हम हैं खलनायक, मोहब्बत, महानता द फिल्म, मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी, दाल में काला, प्यासी आत्मा ,हत्यारा, 2001, घरवाली बाहरवाली, जुल्मों सितम, बड़े मियां छोटे मियां, खूनी इलाका द प्रोहिबिटेड एरिया, जय हिंद द प्राइड, फूल और आग, शिकार, खरीदार, ग्लैमर गर्ल,  सीआईडी, महारानी, कातिल हसीनों का, गुमनाम कातिल, इत्तेफाक, प्यार दीवाना होता है, खंजर, मिस्टर हॉट मिस्टर कूल, खुशबू द प्रेग्नेंसी ऑफ लव ,शॉर्टकट द कॉन इज ऑन, अपार्टमेंट रेंट अट योर ओन रिस्क, दाल में कुछ काला और खाकी जैसी फिल्मों में अभिनय किया है। 

 
इन टीवी सीरियल्स में काम किया 
 किशोर भानूशाली ने टेलीविजन की दुनिया में भी अच्छा खासा नाम कमाया है और आज भी काम कर रहे हैं। उनके धारावाहिक रहे अंदाज, जिंबो, दाल में काला, कोरा कागज, ट्रक धिना धिन, अखंड सौभाग्यवती, सीआईडी, शक्तिमान, नवरंगी, इधर कमाल उधर धमाल, बंदा ये बिंदास है, रेशम डंक, देख इंडिया देख, एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा, लगे रहो चाचू, भाभी जी घर पर हैं, हप्पू की उल्टन पलटन, सात फेरों की हेराफेरी जैसे सुपरहिट धारावाहिकों में काम किया है। भाभी जी घर पर हैं एक बहुत ही शानदार और मशहूर सीरियल है। उसमें पुलिस कमिश्नर का रोल अदा कर रहे हैं। वह बताते हैं कि सन 2015 से वह इस धारावाहिक में काम कर रहे हैं। 

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